शनिवार, 18 जनवरी 2014

डॉली

रात के लगभग दस बज रहे थे और मैं अपने बिस्तर पर लेटा था। दिनभर की व्यस्तता के कारण थकान महसूस हो रही थी, इसलिए जल्दी ही सोने चला आया। अभी आंखें लगी ही थी कि तभी मोबाइल की घंटी बजने लगी। थोड़ी झल्लाहट के साथ मैंने फोन उठाया। दिल्ली के एक मित्र का फोन था। उसने बताया कि डॉली ने आत्महत्या कर ली। मैंने अपने मित्र से जब उसकी आत्महत्या का कारण पूछा तो उसने बताया- दरअसल आज डॉली को देखने लड़के वाले आने वाले थे। चौधरी ने डॉली को तैयार रहने को कहा-तो उसने शादी करने से इनकार कर दिया। इसपर चौधरी ने उसकी पिटाई कर दी। वह रोती हुई छत पर भागी और अपने प्रमी को फोन लगाया। उसने अपने प्रेमी को सारी बातें बताईं और कल ही शादी करने को कहा। उसके प्रेमी ने शादी से इनकार कर दिया। इसके बाद डॉली ने अपनी आंखें बंद कर लीं और छत से कूद गई। सिर के बल गिरने की वजह से उसकी उसी क्षण मृत्यु हो गई। इस खबर ने मुझे स्तब्ध कर दिया। आखों से नींद काफूर हो गई और मैं उसके ही बारे में सोचने लगा।
स्नातक की परीक्षा पास करने के बाद मैं आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली गया था। नया शहर, नए लोग और नई संस्कृति। इन सबमें मुझे ढलना था और अपने भविष्य के लिए रास्ता भी तलाशना था। मैंने एक बॉयज हॉस्टल में कमरा ले लिया और परास्नातक में प्रवेश के लिए तैयारी करने लगा। उस हॉस्ट में ज्यादातर पढ़ने वाले लड़के ही थे, सो धीरे-धीरे मैं उन सबसे घुलने-मिलने लगा। मैं जब लगातार पढ़ाई से थक जाता, तो या तो छत पर जाकर ठंडी-ठंडी हवाओं का आनंद लेने लगता या फिर किसी लड़के के कमरे में जाकर अन्य लड़कों के साथ किसी किसी मुद्दे पर बहस अर्थात वाद विवाद करने लगता।
हॉस्टल के ठीक सामने एक खंडहरनुमा भवन था। लगता था जैसे तीस-चालीस सालों से वहां किसी का आना जाना नहीं हुआ हो। परंतु अचानक एक दिन वहां चार-पांच लोग दिखाई दिए। पता चला कि किसी ने वह जगह खरीद ली है। हमें इस बात में कोई रुचि नहीं थी। एक दिन हमारे हॉस्टल के एक मित्र ने बताया कि किसी चौधरी ने वह जगह खरीदी है, जिसकी दो बेटियां और एक बेटा है। मैंने उससे कहा- तो इसमें बतलाने वाली कौन सी बात है। उसने कहा- उसकी बड़ी बेटी बला की खूबसूरत है। मैंने फिर कहा- तो इससे हमें क्या लेना देना। तुमलोग अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो। वह लड़का बड़बड़ाता हुआ वहां से चला गया।
दिन बीतते गए और वह खंडहर जमींदोज हो गया। कुछ ही महीने में वहां एक शानदार तिमंजिला मकान खड़ा था। जिस दिन गृहप्रवेश था, मैं प्रवेश परीक्षा देने के लिए चेन्नई गया हुआ था। जब मैं लौटकर आया तो लड़कों ने मुझे बताया कि चैधरी का परिवार उस नवनिर्मित मकान में रहने गया है। मेरी इन बातों में कोई रुचि नहीं थी इसलिए मैनें कोई ध्यान नहीं दिया। अगले दिन जब मैं सो कर उठा तो बारिश हो रही थी। मुझे बारिश के पानी में भीगना बहुत पसंद है, सो मैं छत की तरफ भागा। बारिश शायद दो-तीन घंटे से हो रही थी, इसलिए छत पर थोड़ा पानी जमा हो गया था। मैं उस मूसलाधार बारिश में भीगने का आनंद लेने लगा। तभी मेरी नजर सामने वाली छत पर गई। चौधरी की बेटी भी अपने घर की छत पर बारिश में भीगने का आनंद ले रही थी। मैंने अपने जीवन में इतनी खूबसूरत लड़की नहीं देखी थी। हल्के गुलाबी रंग के सलवार सूट में लम्बे-लम्बे भीगे बालों वाली गोरी और साधारण कद की उस २२&२३  साल की लड़की के चेहरे पर एक अजीब सा तेज था। बारिश अपने पूरे शबाब पर था और वह भी इसके मजे ले रही थी। मैं एकटक उसकी तरफ देखने लगा। तभी उसकी नजर मुझपर गई। उसने अपनी पलकें झुका लीं और सीढि़यों की तरफ भागी। उसके बाद से मुझे बारिश का पानी चुभने लगा। मैं भी नीचे गया और कपड़े बदलने लगा।
दोपहर के दो बज रहे थे और भोजन के लिए सब लोग मेस की तरफ रवाना हो रहे थे। निशांत ने मुझे आवाज दी, तो मैंने कहा- आप चलिए, मैं आता हूं। सच कहूं तो उस दिन मुझे भूख नहीं लग रही थी। मैंने निश्चय कर लिया कि मैं उस लड़की के बारे में सबकुछ पता करके रहूंगा।
अब मैं रोज जल्दी उठकर छत पर चला जाता था और उसकी गतिविधियों को देखता रहता था। वह रोज सुबह उठकर नहा-धोकर तुलसी को जल चढ़ाती थी। फिर पूजन कक्ष में जाकर पूजा करके रसोई में चली जाती थी। नाश्ता बनाकर अपने भाई-बहन को स्कूल के लिए तैयार करके उसे स्कूल भेजती थी। उसके बाद खुद नाश्ता करके कहीं निकल जाती थी और दोपहर को लौटकर आती। शाम को कुछ बच्चे उसके घर पढ़ने आते थे। मैंने उसकी ये पूरी दिनचर्या नोट की थी।
एक शाम बच्चे पढ़ने नहीं आए तो वह छत पर गई। संयोग से मैं भी उस वक्त अपने हॉस्टल की छत पर पतंग उड़ा रहा था। उस दिन उसने हरे रंग का सूट पहना था। वैसे तो मुझे हरा रंग पसंद नहीं था, लेकिन उस दिन से मुझे वह रंग अच्छा लगने लगा। मेरी पतंग आसमान में काफी उंचाई पर थी, लेकिन मेरे मन का पतंग गोते खा रहा था। अचानक उसकी नजर मुझसे टकरा गई और उसने अपनी नजरें झुका लीं। हालांकि इस बार जो हुआ, उसकी कल्पना भी मैंने नहीं की थी। नजरें झुकने के साथ ही उसके होठों पर मुस्कुराहट तैर गई। इससे मेरे मन का पतंग आसमान की उंचाइयों पर पहुंच गया। परंतु अगले ही पल एक झटका लगा और मेरे मन के पतंग की डोर छूट गई। दरअसल चौधरी कब वहां गया और उसने मुझे उसकी बेटी को घूरते देख लिया, मुझे पता ही नहीं चला। मैंने अपनी नजरें अपनी पतंग पर टिका ली और फिर एक लड़के को डोर पकड़ा कर जल्दी से नीचे चला गया।
इन दिनों मैंने एक बात नोट की कि एक पंडित का उसके घर हमेशा आना-जाना लगा रहता है। मैंने कई फिल्मों में देखा था कि किसी के घर के अंदर की जानकारी चाहिए तो उस घर के पंडित या नौकर को पटाना चाहिए। मैंने भी उसी फार्मूले पर काम करना शुरू कर दिया। मैंने पंडित से दोस्ती गांठ ली और धीरे-धीरे उससे जानकारियां हासिल करने लगा। लेकिन पंडित ने जो बताया वह चैंकाने वाली बातें थीं।
पंडितजी ने बताया कि दरअसल डॉली उस चौधरी की नहीं बल्कि वह तो उसके बड़े भाई की बेटी है, जो अब इस दुनिया में नहीं हैं। मैंने उत्सुकतावश पूछा- और बाकी के दोनों बच्चे? उसने बताया कि वे दोनों चौधरी के ही बच्चे हैं। दरअसल जब डॉली दस बरस की थी तभी चौधरी का अपनी भाभी के साथ प्रेम पनप गया। धीरे-धीरे प्रेम परवान चढ़ता गया और इस हद तक पहुंच गया कि उस दोनों ने एक होने का फैसला कर लिया। पर इस राह में दो रोड़े थे- एक चौधरी की पत्नी और दूसरा उसका सगा भाई। दोनों ने इन दोनों कांटों को साफ करने की योजना बनाई। दोनों ने सबसे पहले डॉली के पिता को रास्ते से हटाने का फैसला किया। डॉली की मां ने दूध में नींद की गोलियां डालकर उसके पिता को पिला दिया। चौधरी का भाई जब उस रात सोया तो फिर कभी जाग नहीं पाया। उन लोगों ने मौत का कारण हार्ट अटैक बताया। करीब छह महीने बाद ही उस घर में एक और हादसा हुआ। चौधरी की पत्नी पैर फिसलने की वजह से सीढि़यों से लुढ़क गई। सिर में अत्यधिक चोट लगने के कारण वह तीन महीने तक कोमा में रही और फिर एक दिन उसने भी दुनिया को अलविदा कह दिया। यह सब इतनी सोची-समझी साजिश के तहत किया गया कि किसी को कोई शक नहीं हुआ। कुछ ही महीनों के बाद चौधरी और डॉली की मां एक हो गए।
पंडितजी ने एक और बात बताई। डॉली दो सालों से एक लड़के से प्रेम करती है। वह एक मुस्लिम लड़का है और माडलिंग में अपना करियर बनाना चाहता है। यह सुनकर मुझे थोड़ा झटका लगा, लेकिन मैंने इसे अपने चेहरे पर जाहिर नहीं होने दिया। अब मैंनें डॉली के सपने देखना छोड़ दिया। फिर भी जब भी वह मेरे सामने आती तो मेरे चेहरे खिल जाते।

उन्हीं दिनों मेरे परास्नातक प्रवेश परीक्षा का परिणाम गया और मैंने दिल्ली छोड़ दी। मेरा प्रवेश एमसीए में चेन्नई के अन्ना यूनिवर्सिटी में हो गया था। आज मेरे पहले सेमेस्टर की परीक्षा समाप्त हुई तो मैं चैन की सांस ले रहा था, तभी डॉली की मौत की खबर गई। आज मुझे सिर्फ चौधरी पर बल्कि उस बेवफा पर भी गुस्सा रहा है जिसपर डॉली ने खुद से भी ज्यादा विश्वास किया।